जन्माष्टमी पर्व को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व पूरी दुनिया में पूर्ण आस्था एवं श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। जन्माष्टमी को भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। श्रीकृष्ण युगों-युगों से हमारी आस्था के केंद्र रहे हैं। वे कभी यशोदा मैया के लाल होते हैं, तो कभी ब्रज के नटखट कान्हा।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी आज में बन रहा है 'द्वापर युग' वाला अद्भूत योग! पढ़ें 2 सितंबर रविवार को मनाई जाने वाली श्री कृष्ण जन्माष्टमी की व्रत विधि और धार्मिक महत्व!
नटखट नंद गोपाल, यशोदा के नंद लाल और भक्तों के भगवान श्री कृष्ण का जन्म उत्सव इस वर्ष भी धूमधाम से मनाया जाएगा। वैसे तो श्री कृष्ण जन्माष्टमी हर साल मनाई जाती है लेकिन इस बार जन्माष्टमी पर अद्भूत योग बन रहा है। ये ठीक वैसा ही योग है जो द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के जन्म के समय बना था। इस योग को श्री कृष्ण जयंती के नाम से जाना जाता है।
सूचना: स्मार्त संप्रदाय के लोग श्री कृष्ण जन्माष्टमी 2 सितंबर को मनाएंगे जबकि वैष्णव पंथ के अनुयायी जन्माष्टमी का पर्व 3 सितंबर को मनाएंगे। वैष्णव और स्मार्त सम्प्रदाय मत को मानने वाले लोग इस त्यौहार को अलग-अलग नियमों से मनाते हैं।
हिन्दू धर्म ग्रन्थ निर्णय सिंधु के अनुसार,
जब भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि में अर्ध रात्रि 12 बजे रोहिणी नक्षत्र हो और सूर्य सिंह राशि में तथा चंद्रमा वृष राशि में हो, तब श्री कृष्ण जयंती योग बनता है। द्वापर युग में घटित यह काल चक्र 2 सितंबर 2018, रविवार को भी घटित होगा। 2 सितंबर को रात्रि 8 बजकर 49 मिनट के बाद अष्टमी तिथि लग रही है और इस तिथि में रोहिणी नक्षत्र व्याप्त होगा।
जन्माष्टमी पूजा मुहूर्त 2018
निशीथ पूजा मुहूर्त 23:58:25 से 24:43:35 तक अवधि0 घंटे 45 मिनट
जन्माष्टमी पारणा मुहूर्त 19:21:52 के बाद 3 सितंबर को
*सुखी जीवन के लिए जन्माष्टमी पर करें ये काम*
प्रेम में सफलता और बढ़ोत्तरी के लिए गाय के दूध से भगवान कृष्ण को भोग लगाएं और पंचामृत से उनका अभिषेक करें।
भौतिक सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए भगवान श्री कृष्ण को माखन मिश्री का भोग लगाएं और कच्ची लस्सी से अभिषेक करें।
शारीरिक व्याधि और रोगों से मुक्ति पाने के लिए दूध में तुलसी डालकर भगवान को भोग लगाएं और कच्चे दूध से अभिषेक करें।
कार्यों में आ रही परेशानियों और सफलता प्राप्ति के लिए भगवान श्री कृष्ण को लड्डुओं का भोग अर्पित करें और गन्ने के रस से अभिषेक करें।
जन्माष्टमी व्रत व पूजन विधि
1. इस व्रत में अष्टमी के उपवास से पूजन और नवमी के पारणा से व्रत की पूर्ति होती है।
2. इस व्रत को करने वाले को चाहिए कि व्रत से एक दिन पूर्व (सप्तमी को) हल्का तथा सात्विक भोजन करें। रात्रि को स्त्री संग से वंचित रहें और सभी ओर से मन और इंद्रियों को काबू में रखें।
3. उपवास वाले दिन प्रातः स्नानादि से निवृत होकर सभी देवताओं को नमस्कार करके पूर्व या उत्तर को मुख करके बैठें।
4. हाथ में जल, फल और पुष्प लेकर संकल्प करके मध्यान्ह के समय काले तिलों के जल से स्नान (छिड़ककर) कर देवकी जी के लिए प्रसूति गृह बनाएँ। अब इस सूतिका गृह में सुन्दर बिछौना बिछाकर उस पर शुभ कलश स्थापित करें।
5. साथ ही भगवान श्रीकृष्ण जी को स्तनपान कराती माता देवकी जी की मूर्ति या सुन्दर चित्र की स्थापना करें। पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नन्द, यशोदा और लक्ष्मी जी इन सबका नाम क्रमशः लेते हुए विधिवत पूजन करें।
6. यह व्रत रात्रि बारह बजे के बाद ही खोला जाता है। इस व्रत में अनाज का उपयोग नहीं किया जाता। फलहार के रूप में कुट्टू के आटे की पकौड़ी, मावे की बर्फ़ी और सिंघाड़े के आटे का हलवा बनाया जाता है।
जन्माष्टमी कथा
द्वापर युग के अंत में मथुरा में उग्रसेन राजा राज्य करते थे। उग्रसेन के पुत्र का नाम कंस था। कंस ने उग्रसेन को बलपूर्वक सिंहासन से उतारकर जेल में डाल दिया और स्वयं राजा बन गया। कंस की बहन देवकी का विवाह यादव कुल में वासुदेव के साथ निश्चित हो गया। जब कंस देवकी को विदा करने के लिए रथ के साथ जा रहा था तो आकाशवाणी हुई, हे कंस! जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से विदा कर रहा है उसका आठवाँ पुत्र तेरा संहार करेगा। आकाशवाणी की बात सुनकर कंस क्रोध से भरकर देवकी को मारने के लिए तैयार हो गया। उसने सोचा - न देवकी होगी न उसका कोई पुत्र होगा।
वासुदेव जी ने कंस को समझाया कि तुम्हें देवकी से तो कोई भय नहीं है। देवकी की आठवीं संतान से भय है। इसलिए मैँ इसकी आठवीं संतान को तुम्हे सौंप दूँगा। कंस ने वासुदेव जी की बात स्वीकार कर ली और वासुदेव-देवकी को कारागार में बंद कर दिया। तत्काल नारद जी वहाँ आ पहुँचे और कंस से बोले कि यह कैसे पता चलेगा कि आठवाँ गर्भ कौन-सा होगा। गिनती प्रथम से शुरू होगी या अंतिम गर्भ से। कंस ने नारद जी के परामर्श पर देवकी के गर्भ से उत्पन्न होने वाले समस्त बालकों को एक-एक करके निर्दयतापूर्वक मार डाला।
भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण जी का जन्म हुआ। उनके जन्म लेते ही जेल की कोठरी में प्रकाश फैल गया। वासुदेव-देवकी के सामने शंख, चक्र, गदा एवं पदमधारी चतुर्भुज भगवान ने अपना रूप प्रकट कर कहा, अब में बालक का रूप धारण करता हूँ। तुम मुझे तत्काल गोकुल में नन्द के यहाँ पहुँचा दो और उनकी अभी-अभी जन्मी कन्या को लेकर कंस को सौंप दो। वासुदेव जी ने वैसा ही किया और उस कन्या को लेकर कंस को सौंप दिया।
कंस ने जब उस कन्या को मारना चाहा तो वह कंस के हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई और देवी का रूप धारण कर बोली कि मुझे मारने से क्या लाभ है? तेरा शत्रु तो गोकुल पहुँच चुका है। यह दृश्य देखकर कंस हतप्रभ और व्याकुल हो गया। कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए अनेक दैत्य भेजे। श्रीकृष्ण जी ने अपनी आलौकिक माया से सारे दैत्यों को मार डाला। बड़े होने पर कंस को मारकर उग्रसेन को राजगद्दी पर बैठाया।
जन्माष्टमी का महत्व
1. इस दिन देश के समस्त मंदिरों का श्रृंगार किया जाता है।
2. श्री कृष्णावतार के उपलक्ष्य में झाकियाँ सजाई जाती हैं।
3. भगवान श्रीकृष्ण का श्रृंगार करके झूला सजा के उन्हें झूला झुलाया जाता है।
स्त्री-पुरुष रात के बारह बजे तक व्रत रखते हैं। रात को बारह बजे शंख तथा घंटों की आवाज से श्रीकृष्ण के जन्म की खबर चारों दिशाओं में गूँज उठती है। भगवान कृष्ण जी की आरती उतारी जाती है और प्रसाद वितरण किया जाता है।
निःसंतान दंपतियों के लिए श्री कृष्ण जयंती का महत्व
इस वर्ष श्री कृष्ण जयंती योग बनना निःसंतान दंपतियों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है। ऐसे तमाम लोग जिन्हें अभी तक संतान की प्राप्ति नहीं हुई है। वे इस जन्माष्टमी पर पूरे विधि विधान से भगवान श्री कृष्ण का पूजन करें और व्रत रखें। साथ ही संतान गोपाल मंत्र का जाप करें और हो सके तो संतान गोपाल यंत्र की स्थापना भी करें।
*“ऊं श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविंद वासुदेव जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्णं त्वामहं शरणं गत:।।”*
श्री कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व
शास्त्रों के अनुसार जन्माष्टमी के व्रत एवं पूजन का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार थे। कहा जाता है कि इनके दर्शन मात्र से मनुष्य के समस्त दुःख दूर हो जाते हैं। शास्त्रों में जन्माष्टमी के व्रत को व्रतराज कहा गया है। जो भक्त सच्ची श्रद्धा के साथ इस व्रत का पालन करते हैं उन्हें महापुण्य की प्राप्ति होती है। इसके अलावा संतान प्राप्ति, वंश वृद्धि और पितृ दोष से मुक्ति के लिए जन्माष्टमी का व्रत एक वरदान है।
सभी पाठकों को जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ !
श्री कृष्ण जन्माष्टमी आज में बन रहा है 'द्वापर युग' वाला अद्भूत योग! पढ़ें 2 सितंबर रविवार को मनाई जाने वाली श्री कृष्ण जन्माष्टमी की व्रत विधि और धार्मिक महत्व!
नटखट नंद गोपाल, यशोदा के नंद लाल और भक्तों के भगवान श्री कृष्ण का जन्म उत्सव इस वर्ष भी धूमधाम से मनाया जाएगा। वैसे तो श्री कृष्ण जन्माष्टमी हर साल मनाई जाती है लेकिन इस बार जन्माष्टमी पर अद्भूत योग बन रहा है। ये ठीक वैसा ही योग है जो द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के जन्म के समय बना था। इस योग को श्री कृष्ण जयंती के नाम से जाना जाता है।
सूचना: स्मार्त संप्रदाय के लोग श्री कृष्ण जन्माष्टमी 2 सितंबर को मनाएंगे जबकि वैष्णव पंथ के अनुयायी जन्माष्टमी का पर्व 3 सितंबर को मनाएंगे। वैष्णव और स्मार्त सम्प्रदाय मत को मानने वाले लोग इस त्यौहार को अलग-अलग नियमों से मनाते हैं।
हिन्दू धर्म ग्रन्थ निर्णय सिंधु के अनुसार,
जब भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि में अर्ध रात्रि 12 बजे रोहिणी नक्षत्र हो और सूर्य सिंह राशि में तथा चंद्रमा वृष राशि में हो, तब श्री कृष्ण जयंती योग बनता है। द्वापर युग में घटित यह काल चक्र 2 सितंबर 2018, रविवार को भी घटित होगा। 2 सितंबर को रात्रि 8 बजकर 49 मिनट के बाद अष्टमी तिथि लग रही है और इस तिथि में रोहिणी नक्षत्र व्याप्त होगा।
जन्माष्टमी पूजा मुहूर्त 2018
निशीथ पूजा मुहूर्त 23:58:25 से 24:43:35 तक अवधि0 घंटे 45 मिनट
जन्माष्टमी पारणा मुहूर्त 19:21:52 के बाद 3 सितंबर को
*सुखी जीवन के लिए जन्माष्टमी पर करें ये काम*
प्रेम में सफलता और बढ़ोत्तरी के लिए गाय के दूध से भगवान कृष्ण को भोग लगाएं और पंचामृत से उनका अभिषेक करें।
भौतिक सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए भगवान श्री कृष्ण को माखन मिश्री का भोग लगाएं और कच्ची लस्सी से अभिषेक करें।
शारीरिक व्याधि और रोगों से मुक्ति पाने के लिए दूध में तुलसी डालकर भगवान को भोग लगाएं और कच्चे दूध से अभिषेक करें।
कार्यों में आ रही परेशानियों और सफलता प्राप्ति के लिए भगवान श्री कृष्ण को लड्डुओं का भोग अर्पित करें और गन्ने के रस से अभिषेक करें।
जन्माष्टमी व्रत व पूजन विधि
1. इस व्रत में अष्टमी के उपवास से पूजन और नवमी के पारणा से व्रत की पूर्ति होती है।
2. इस व्रत को करने वाले को चाहिए कि व्रत से एक दिन पूर्व (सप्तमी को) हल्का तथा सात्विक भोजन करें। रात्रि को स्त्री संग से वंचित रहें और सभी ओर से मन और इंद्रियों को काबू में रखें।
3. उपवास वाले दिन प्रातः स्नानादि से निवृत होकर सभी देवताओं को नमस्कार करके पूर्व या उत्तर को मुख करके बैठें।
4. हाथ में जल, फल और पुष्प लेकर संकल्प करके मध्यान्ह के समय काले तिलों के जल से स्नान (छिड़ककर) कर देवकी जी के लिए प्रसूति गृह बनाएँ। अब इस सूतिका गृह में सुन्दर बिछौना बिछाकर उस पर शुभ कलश स्थापित करें।
5. साथ ही भगवान श्रीकृष्ण जी को स्तनपान कराती माता देवकी जी की मूर्ति या सुन्दर चित्र की स्थापना करें। पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नन्द, यशोदा और लक्ष्मी जी इन सबका नाम क्रमशः लेते हुए विधिवत पूजन करें।
6. यह व्रत रात्रि बारह बजे के बाद ही खोला जाता है। इस व्रत में अनाज का उपयोग नहीं किया जाता। फलहार के रूप में कुट्टू के आटे की पकौड़ी, मावे की बर्फ़ी और सिंघाड़े के आटे का हलवा बनाया जाता है।
जन्माष्टमी कथा
द्वापर युग के अंत में मथुरा में उग्रसेन राजा राज्य करते थे। उग्रसेन के पुत्र का नाम कंस था। कंस ने उग्रसेन को बलपूर्वक सिंहासन से उतारकर जेल में डाल दिया और स्वयं राजा बन गया। कंस की बहन देवकी का विवाह यादव कुल में वासुदेव के साथ निश्चित हो गया। जब कंस देवकी को विदा करने के लिए रथ के साथ जा रहा था तो आकाशवाणी हुई, हे कंस! जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से विदा कर रहा है उसका आठवाँ पुत्र तेरा संहार करेगा। आकाशवाणी की बात सुनकर कंस क्रोध से भरकर देवकी को मारने के लिए तैयार हो गया। उसने सोचा - न देवकी होगी न उसका कोई पुत्र होगा।
वासुदेव जी ने कंस को समझाया कि तुम्हें देवकी से तो कोई भय नहीं है। देवकी की आठवीं संतान से भय है। इसलिए मैँ इसकी आठवीं संतान को तुम्हे सौंप दूँगा। कंस ने वासुदेव जी की बात स्वीकार कर ली और वासुदेव-देवकी को कारागार में बंद कर दिया। तत्काल नारद जी वहाँ आ पहुँचे और कंस से बोले कि यह कैसे पता चलेगा कि आठवाँ गर्भ कौन-सा होगा। गिनती प्रथम से शुरू होगी या अंतिम गर्भ से। कंस ने नारद जी के परामर्श पर देवकी के गर्भ से उत्पन्न होने वाले समस्त बालकों को एक-एक करके निर्दयतापूर्वक मार डाला।
भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण जी का जन्म हुआ। उनके जन्म लेते ही जेल की कोठरी में प्रकाश फैल गया। वासुदेव-देवकी के सामने शंख, चक्र, गदा एवं पदमधारी चतुर्भुज भगवान ने अपना रूप प्रकट कर कहा, अब में बालक का रूप धारण करता हूँ। तुम मुझे तत्काल गोकुल में नन्द के यहाँ पहुँचा दो और उनकी अभी-अभी जन्मी कन्या को लेकर कंस को सौंप दो। वासुदेव जी ने वैसा ही किया और उस कन्या को लेकर कंस को सौंप दिया।
कंस ने जब उस कन्या को मारना चाहा तो वह कंस के हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई और देवी का रूप धारण कर बोली कि मुझे मारने से क्या लाभ है? तेरा शत्रु तो गोकुल पहुँच चुका है। यह दृश्य देखकर कंस हतप्रभ और व्याकुल हो गया। कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए अनेक दैत्य भेजे। श्रीकृष्ण जी ने अपनी आलौकिक माया से सारे दैत्यों को मार डाला। बड़े होने पर कंस को मारकर उग्रसेन को राजगद्दी पर बैठाया।
जन्माष्टमी का महत्व
1. इस दिन देश के समस्त मंदिरों का श्रृंगार किया जाता है।
2. श्री कृष्णावतार के उपलक्ष्य में झाकियाँ सजाई जाती हैं।
3. भगवान श्रीकृष्ण का श्रृंगार करके झूला सजा के उन्हें झूला झुलाया जाता है।
स्त्री-पुरुष रात के बारह बजे तक व्रत रखते हैं। रात को बारह बजे शंख तथा घंटों की आवाज से श्रीकृष्ण के जन्म की खबर चारों दिशाओं में गूँज उठती है। भगवान कृष्ण जी की आरती उतारी जाती है और प्रसाद वितरण किया जाता है।
निःसंतान दंपतियों के लिए श्री कृष्ण जयंती का महत्व
इस वर्ष श्री कृष्ण जयंती योग बनना निःसंतान दंपतियों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है। ऐसे तमाम लोग जिन्हें अभी तक संतान की प्राप्ति नहीं हुई है। वे इस जन्माष्टमी पर पूरे विधि विधान से भगवान श्री कृष्ण का पूजन करें और व्रत रखें। साथ ही संतान गोपाल मंत्र का जाप करें और हो सके तो संतान गोपाल यंत्र की स्थापना भी करें।
*“ऊं श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविंद वासुदेव जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्णं त्वामहं शरणं गत:।।”*
श्री कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व
शास्त्रों के अनुसार जन्माष्टमी के व्रत एवं पूजन का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार थे। कहा जाता है कि इनके दर्शन मात्र से मनुष्य के समस्त दुःख दूर हो जाते हैं। शास्त्रों में जन्माष्टमी के व्रत को व्रतराज कहा गया है। जो भक्त सच्ची श्रद्धा के साथ इस व्रत का पालन करते हैं उन्हें महापुण्य की प्राप्ति होती है। इसके अलावा संतान प्राप्ति, वंश वृद्धि और पितृ दोष से मुक्ति के लिए जन्माष्टमी का व्रत एक वरदान है।
सभी पाठकों को जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ !
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