अक्षय गिल
साढ़े 4 साल तक चाटी सत्ता की मलाई
"अब याद आई जनता की भलाई "
यह है कुछ दावेदारों की असली सच्चाई
अपने निजी स्वार्थ के लिए नेता किस हद तक नीचे गिर सकते हैं इसका उदाहरण चुनाव से ठीक पहले सामने आ ही जाता है आजकल विधानसभा क्षेत्र में कई दावेदार सामने आ रहे हैं। कुछ दावेदार तो ऐसे हैं जिन्होंने खनन और क्रेशर से मोटी कमाई की है। और आज भी खनन माफियाओं का हाथ उनके सर पर है वो भी सत्ता के साथ अपना विकास किया और अब सरकार को ही कोस रहे हैं।
इसके अलावा भाजपा सरकार में साढ़े 4 साल तक ऊर्जा मंत्री के दरबार में मत्था टेक कर अपने काम निकालने वाले कांग्रेस और बीजेपी के अलावा आम आदमी पार्टी नेता भी शामिल हैं। अब कुछ टिकट के दावेदार बन रहे हैं।
आखिरी चुनावी साल में जिन नेताओं को किसानों की याद आ रही है। सिंचाई , सूखी नहरें याद आ रही है। जिन नेताओं को सड़कों की हालत याद आ रही है। जिनको बिजली के कट याद आ रहे है। जिनको अब सड़कों के गड्ढे दिखाई दे रहे हैं। ऐसे नेताओं को तो शर्म आनी चाहिए।
4 साल से विपक्ष की भूमिका में सिर्फ चौधरी किरनेेश जंग ही दिखाई दिए। बाकीयों ने भी फोटो लिए होगे।
कुछ नेता करोना कॉल में अपने घरों में दुबके हुए थे। मरने के डर से अपनी गाड़ी के शीशे तक नहीं उतारे। इस दौरान अगर कोई नेता जनता का हमदर्द था तो वो सुखराम चौधरी था। जिसने खुद कोरोना का दंश भी झेला हैं। और जनता का दर्द भी देखा है। जनता के बीच भी रहा हैं।
दूसरा नाम चौधरी किरनेश जंग का भी है। इन्होंने भी जनता का साथ नहीं छोड़ा है। हो सकता है इन दोनों नेताओं के प्रति जनता की नाराजगी हो? अब यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन फिलहाल तो ग्राउंड रिपोर्ट यही है। वास्तव में जनता सब देख रही है। अब फैसला तो जनता ने लेना है। मीडिया तो इंटरव्यू ले सकता है। उनके कार्यक्रम को प्रकाशित कर सकता है। वोट की चोट तो जनता के हाथ ही है।
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