विगत वर्ष के याद मुझे कुछ ऐसे क्षण,
कुछ मीठे थे शहद से, कुछ थे विषधर् फन।
कहीं अश्रुपात से भीगे-भीगे युगल नयन,
कहीं उड़ती तितलियोँ को कम पड़ता महागगन।
क्या रखोगे आशायें तुम नर-प्रभारियों से
करे जीन्होंने पैंतीस टुकड़े तीखी आरियों से।
ये दुशासन, रावण और महिषासुर से हैं,
ये होंगे ध्वंस जब दुर्गा प्रगटेंगी नारियों से।
दो राष्ट्र कब तक रक्तपात में खेलेंगे,
अनगिनत मासूमों को मृत्यु में धकेलेंगे।
मिसाइलों की अँधी दौड़ को रोक भी दो,
कोई नहीं रुका तो, तुम क्या, सब ही झेलेंगे।
काशी कारिडोर कहीं उज्जैन सजा रे,
ज्ञानवापी में शिवलिंग भी थी उसकी रजा रे।
विश्व पटल पर श्रृंगारित हुई राष्ट्र ध्वजा रे,
तवांग में अबकी था गलवान से दोगुना मजा रे।
हस्त प्रार्थनारत अगर हों प्रभु स्मक्ष,
परहित, नरसेवा, भक्ति हों श्रेष्ठ लक्ष।
फिर स्वर्ग धरा की गोद स्वयं कर्वट लेगा,
हर घास का तिनका बरगद जैसा होगा वृक्ष।
Sanjinder Singh
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