एक करिश्माई महिला पुलिस अधिकारी **** नाम आदर पूर्वक लीजिए : ममता सिंह ! लेडी सिंघम के नाम से विख्यात हरियाणा पुलिस की एडीशनल डायरेक्टर जनरल ममता सिंह, जिन्होंने अपने साहस, सूझबूझ,शौर्य, कुशल रणनीति और अपराजित साहस का परिचय देते हुए नूह में ढाई हजार लोगों की जान बचाई, बुजुर्ग,पुरुष, महिला, और बच्चे सभी की, कैसे...
हरियाणा का नूंह, 31 जुलाई : तीन तरफ पहाड़ियों से घिरा भगवान महादेव का विशाल मंदिर। ढाई तीन हजार श्रद्धालु पर ऊंची पहाड़ियों पर छिपे उपद्रवियों द्वारा अचानक हमला, मोर्टार, गोली, पत्थर, लाठी,-डंडे, मजहबी नारे और पाकिस्तान जिंदाबाद की उत्साह भरी गूंज!
भगदड़ मची। जान बचाने के लिए सभी मंदिर के अंदर, थरथर कांपते, रोते बिलखते, मौत की आशंका से ग्रस्त।
दंगाइयों द्वारा 6 घंटे तक उनका घेराव। और श्रद्धालुओं के लिए नारकीय यातना। एक एक पल छह घंटे के बराबर, ना कोई सहायता, ना सहारा, ना भरोसा, ना दिलासा और ना ही उम्मीद किसी भी तरह की।
*** समय
दोपहर बाद लगभग 4:00 बजे,एक किरण फूटी ! एक दैवीय चमत्कार की तरह हरियाणा पुलिस की एडीशनल डायरेक्टर जनरल ममता सिंह का अपनी टीम के साथ पदार्पण। महादेव की कृपा।
सभी गदगद, रोती बिलखती महिलाओं एवं बच्चों का ढाढस बंधा। लगा जैसे तिनके का नहीं, पूरे पर्वत का सहारा।धैर्य, धीरज, सांत्वना, हौसला अफजाई और सुरक्षा का आश्वासन ; पर यह सब पर्याप्त होते हुए भी पर्याप्त नहीं था। कोई नहीं जानता था कब क्या होगा अगले क्षण।
लेडी सिंघम के समक्ष तीन समस्याएं थी। पहली, उपद्रवियों को आगे बढ़ने से रोके रखने की। दूसरी, पुलिस में श्रद्धालुओं के भरोसे को कायम रखने की।और तीसरी, सभी को मंदिर से निकालकर सुरक्षित स्थान तक पहुंचाने की।
तीनों ही जिम्मेदारियां बेहद दुर्लभ और तत्कालीन परिस्थितियों में लगभग असंभव सी। ऐसे में ममता सिंह का ऐसी परिस्थितियों से जूझने का विशाल अनुभव काम आया।
** पहले चरण में, उन्होंने पुलिसकर्मियों को काउंटर अटैक के रूप में दंगाइयों पर गोलियां चलाते रहने का आदेश दिया जिससे वो पुलिस बल की ताकत और उनकी संख्या का अंदाज ही ना लगा पाए और अपने स्थान से आगे बढ़ने की हिम्मत भी ना करें।
** दूसरे चरण में, श्रद्धालुओं का हौसला बनाए रखने के लिए आश्वासन दिया कि उनकी सुरक्षा के लिए वो अपनी जान पर खेल जाएंगी पर उन पर आंच नहीं आने देंगीं।
** और तीसरे चरण के लिए शाम ढलते अंधेरे का इंतजार।
तबतक एक पुलिस अधिकारी,दो होमगार्ड सहित चार लोग मारे जा चुके थे और अनेक घायल।
*** सुरक्षित निकाला
शाम हुई और श्रद्धालुओं को सुरक्षित निकालने का ऑपरेशन शुरू, जितना महत्वपूर्ण उतना ही कठिन, दुस्साहसी और खतरनाक ; मृत्यु को चुनौती देने जैसा।
मंदिर से बाहर जाने का सिर्फ एक ही मार्ग था। और बाहर गोलियां, आगजनी, पथराव और आकस्मिक हमलों का डर।
रास्ता निकाला : अंधेरे की आड़ में खेतो के रास्ते छुप छुप कर बाहर निकालने का। फिर भी एक समस्या थी अगर ज्यादा संख्या में लोग निकलेंगे तो दरिंदों को पता लग जाएगा, जिसका अर्थ सुरक्षा पर जोखिम का काला साया।
उपाय : ग्रुप बनाए गए छोटे-छोटे और उनको पुलिस फायरिंग का कवर देकर सुरक्षित स्थान तक पहुंचाना। सुरक्षित स्थान था पुलिस की वह वैन जिसमें ममता सिंह की टीम आई थी और जो घटनास्थल से लगभग 300 मीटर की दूरी पर थी।
पहले ग्रुप में बच्चे और महिलाएं, उनके बाद बुजुर्ग और सबसे आखीर में युवा पुरुष।
हर ग्रुप को जांबाज पुलिस वाले दरिंदों पर गोलियां चलाते हुए सभी को पुलिस वैन तक ले गए। ढाई घंटे में ऑपरेशन खत्म, लगभग रात 8:00 बजे। ना कोई हत ना हताहत, सभी ढाई हजार श्रद्धालु दंगाइयों की पहुंच से बाहर, सुरक्षित।
*** असंभव संभव
शौर्य और सूझबूझ का एक ऐसा ज्वलंत उदाहरण, जिसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। यूं कहिए,कमाल हो गया। और यह कमाल किया पुलिस महिला अधिकारी ममता सिंह ने।
*** कौन हैं
1996 बैच की आईपीएस ऑफिसर ममता सिंह की अपने विभाग में क्या हैसियत है, क्या रुतबा, क्या रेपुटेशन है और क्या रौब दौब इसका अंदाज हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज के इस कथन से लगाया जा सकता है कि संबंधित दिवस पर लगभग ढाई हजार श्रद्धालुओं को दंगाइयों द्वारा घेर लिए जाने की जानकारी जब मुझे मिली तो उनको छुड़ाने का जिम्मा, बिना किसी हिचक और संशय के, ममता सिंह को सौंपा गया। मुझे पूरी आशा थी कि वो अपने मिशन में सफल होंगी, और वो हुईं भी। प्रशंसा के मेरे सारे शब्द उन्हीं के लिए।
राष्ट्रपति के पुलिस सम्मान से सम्मानित ममता सिंह ने, यह पहला अवसर नहीं है, जब ऐसा करिश्मा किया है। पहले भी वो अनेक बार अपने विभाग के लिए सम्मान अर्जित कर चुकी हैं।
उनकी कीर्ति हरियाणा तक ही सीमित नहीं है उन्होंने छत्तीसगढ़ और झारखंड में भी एंटी नक्सल और एंटी माओवादी ऑपरेशन सफलतापूर्वक लीड कर चुकी है, जिसके लिए सर्वोच्च न्यायालय तक ने खुले दिल से उनकी प्रशंसा की है।
आज उनकी नूंह शौर्य गाथा राजनीति के उठापटक के बीच कहीं खो गई है, लेकिन जिन श्रद्धालुओं की उन्होंने रक्षा की है उनके दिलों में ममता सिंह जी की छाप हमेशा ताजी रहेगी। वो सभी खुश हैं।आइए, हम सब भी उनकी खुशियों में सम्मिलित हो जाएं।
डा राकेश पुंज
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