अटल पीठदीश्वर स्वामी विश्वात्मानंद सरस्वती जी महाराज द्वारा किया लोगों का मार्गदर्शन
आज माता श्री नैना देवी मंदिर में श्री गुरू गंगदेव सेवा समिति द्वारा आयोजित , श्री शिव महापुराण कथा एवं तत्व ज्ञान यज्ञ में अटल पीठाधीश्वर, राजगुरु, अनंत श्री विभूषित महामण्डलेश्वर स्वामी श्री विश्वात्मा नन्द सरस्वती जी महाराज ने बहुत ही सुंदर व्याख्यान किया.
आज की कथा का आरंभ शिव आरती गायन से किया गया. उपरांत बहुत ही सुन्दर और मंत्रमुग्ध करने वाली पुष्पांजलि का ऊचारण हुआ।
श्री महा शिव पुराण तत्व ज्ञान यज्ञ में स्वामी जी महाराज ने शिव उपासना की विधि के बारे में विस्तृत रूप से बताने के बाद सती की तपस्या और शिव पार्वती विवाह के प्रसंग का भी वर्णन किया. इस उपलक्ष्य में शिव की बरात की झांकी का भी आयोजन किया गया जिसे देखकर भक्तजनों को बहुत ही हर्ष हुआ.
उपरांत शिव तत्व का वर्णन करते हुए महाराज श्री ने बताया कि शिव तत्व का बोध होने से मनुष्य आवागमन के चक्कर से मुक्त हो जाता है. स्वामी जी ने आगे कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने भी शिव पूजा और पाशुपत व्रत का ज्ञान महर्षि उपमन्यु से प्राप्त किया था. स्वामी जी ने शरीर की पवित्रता और भीतरी पवित्रता में अन्तर करते हुए कहा कि जैसे शरीर की पवित्रता बाहरी साधनों से होती हैं, उसी तरह भीतरी या मन की पवित्रता सच्चे ज्ञान की प्राप्ति से होती है. क्योंकि ज्ञान अगनी सभी कर्मों को जलाकर भस्म कर देती हैं.
स्वामी जी ने कहा कि परमात्मा की प्राप्ति के रास्ते में आने वाली सबसे बड़ी चुनौती संसार के साथ मोह और संबंध है अपितु आत्मा अपने आप में शिव रूप है.
उपरांत रुद्राक्ष के बारे में वर्णन करते हुए स्वामी जी ने कहा कि भगवान शिव ने रुद्राक्ष उत्पत्ति की कथा पार्वती को कही है। एक समय भगवान शिवजी ने एक हजार वर्ष तक समाधि लगाई। समाधि में से जाग्रत होने पर जब उनका मन बाहरी जगत में आया, तब जगत के कल्याण की कामना वाले महादेव ने अपनी आंखें बंद कीं। तब उनके नेत्र में से जल के बिंदु पृथ्वी पर गिरे। उन्हीं से रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए और वे शिव की इच्छा से भक्तों के हित के लिए समग्र देश में फैल गए। उन वृक्षों पर जो फल लगे वे ही रुद्राक्ष हैं।
वे पापनाशक, पुण्यवर्धक, रोगनाशक, सिद्धिदायक तथा भोग मोक्ष देने वाले हैं। रुद्राक्ष जैसे ही भद्राक्ष भी हुए। रुद्राक्ष श्वेत, लाल, पीले तथा काले वर्ण वाले होते हैं। जितने छोटे रुद्राक्ष होंगे उतने ही अधिक फलप्रद हैं। वे अष्टि को दूर करके शांति देने वाले हैं।
अगले दिन की कथा में स्वामी जी ने नंदीश्वर की कथा का वर्णन किया और बताया कि नंदी अल्पायु थे, लेकिन शिव भक्ति से इनका मरने का डर खत्म हो गया और शिव जी ने इन्हें अपना वाहन बना लिया। शास्त्रों में नंदी के जन्म की कथा है। पुराने समय में शिलाद नाम के ब्रह्मचारी ऋषि थे। शिलाद मुनि ने विवाह नहीं किया था। इस कारण उनके पितर देवता चिंतित रहते थे। पितरों की चिंता का कारण ये था कि शिलाद के बाद उनका वंश खत्म हो जाएगा।
एक दिन पितर देवता शिलाद मुनि के सामने प्रकट हुए और उन्हें अपनी ये चिंता बताई। पितर देव ने कहा कि तुम ब्रह्मचारी रहोगे तो हमारा वंश खत्म हो जाएगा। हमारा वंश आगे बढ़ सके, इसके लिए तुम्हें कुछ करना चाहिए।
पितर देवता की चिंता सुनकर शिलाद मुनि ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए तप किया। शिव जी मुनि की तपस्या से प्रसन्न हो गए। शिलाद मुनि के सामने शिव जी प्रकट हुए। शिव जी शिलाद मुनि से वरदान मांगने के लिए कहा।
शिव जी से शिलाद मुनि ने वरदान में एक पुत्र मांगा। शिव जी ने शिलाद मुनि की इच्छा पूरी होने का वर दे दिया और अंतर्ध्यान हो गए।
कुछ समय बाद एक दिन शिलाद मुनि खेत में हल चला रहे थे, उस समय उन्हें खेत में से एक छोटा बच्चा मिला। शिलाद मुनि ने उस बच्चे को अपना पुत्र मान लिया और उसका नाम रखा नंदी। शिलाद मुनि नंदी का पालन करने लगे। शिलाद मुनि ने नंदी को सभी वेदों का ज्ञान दिया।
एक दिन शिलाद मुनि के आश्रम में कुछ अन्य संत-महात्मा आए। संतों ने शिलाद मुनि को तो लंबी उम्र और सुखी जीवन का आशीर्वाद दिया, लेकिन नंदी को कोई आशीर्वाद नहीं दिया। इस बारे में शिलाद मुनि ने संतों से बात की तो संतों ने बताया कि नंदी की उम्र ज्यादा नहीं है, ये अल्पायु है।
संतों की बात सुनकर शिलाद मुनि दुखी रहने लगे। जब नंदी ने पिता को दुखी देखा तो उन्होंने इस दुख की वजह से पूछी। शिलाद मुनि ने नंदी को संतों की बात बता दी। जब नंदी को मालूम हुआ कि वह अल्पायु है तो उन्होंने अपने पिता से कहा कि आप चिंता न करें। संतों की भविष्यवाणी सच नहीं होगी।
नंदी ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए तपस्या शुरू कर दी। कठीन तपस्या से शिव जी प्रसन्न होकर नंदी के सामने प्रकट हुए। शिव जी नंदी से कहा कि तुम मेरे ही अंश हो। इसलिए तुम्हें मृत्यु से डरने की जरूरत नहीं है।
शिव जी ने नंदी से वर मांगने के लिए कहा तो नंदी ने कहा कि आप मुझे अपनी सेवा में रख लीजिए। शिव जी ने नंदी की इच्छा पूरी करने के लिए उन्हें अपना वाहन बना लिया। इसके बाद नंदी शिव के वाहन बने और उनके प्रिय गण भी बन गए। तब से नंदी हर समय शिव जी के साथ ही रहते हैं। इस मान्यता की वजह से शिव जी के हर मंदिर में शिवलिंग के साथ ही नंदी भगवान की प्रतिमा भी जरूर होती है।
अतएव स्वामी जी कहा कि भगवान शिव की उपासना और भक्ति से असंभव भी सम्भव हो सकता है. फिर स्वामी जी ने पिप्पलाद ऋषि की कथा का भी वर्णन किया. कथा के समापन पर बहुत ही मधुर आरती के साथ हुआ। आयोजन समिति की तरफ से मनदीप कुमार अग्रवाल एव सदस्यों ने हर वर्ग के लोगों की सराहना करते हुए सनातन प्रेमी संगत का हार्दिक अभिनंदन एव स्वागत किया।
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