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शनिवार, 2 नवंबर 2024

छठ पूजा पर सुखी भारती की कलम से

 छठ पूजा


छठ महापर्व की शुरूआत को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। ऐसी मान्यता है कि लोक छठी माता की पहली पूजा सूर्य देव ने ही की थी। ऐसा भी माना जाता है कि सबसे पहले महाबली कर्ण ने हीए सूर्यदेव की पूजा शुरू की थी और आज भी छठ पर्व में सूर्य को अर्ध्य देने का विशेष महत्व है। सूर्यपुत्र कर्ण तो भगवान सूर्य के परम भक्त थे, जो प्रति दिन कई-कई घंटे, कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्ध्य दिया करते थे। सूर्यदेव की कृपा से ही वे एक महान् योद्धा बने थे। 

एक मान्यता यह भी है कि देवमाता अदिति ने पहले देवासुर संग्राम में, असुरों से देवताओं के हार जाने पर तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए, देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठी मैया की आराधना की थी। छठी मैया ने उनकी आराधना से प्रसन्न होकर उन्हें सर्वगुण सम्पन्न तेजस्वी पुत्र को जन्म देने का वरदान दिया, जिसके बाद अदिति ने त्रिदेव रूप आदित्य भगवान को जन्म दिया, जिन्होंने देवताओं को असुरों पर विजय दिलाई। कहा जाता है कि तभी से छठ पर्व मनाए जाने का चलन शुरू हो गया।

इस पर्व को लेकर कुछ मान्यताएं महाभारत काल से भी जुड़ी हुई हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार पाण्डव जब अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब श्रीकृष्ण के निर्देश अनुसार द्रोपदी ने छठ व्रत रखा और छठी मैया के आशीर्वाद से उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होने पर पाण्डवों को अपना राजपाट फिर से वापस मिला। पाण्डवों की पत्नी द्रोपदी द्वारा परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी आयु के लिए नियमित रूप से सूर्य की पूजा करने का उल्लेख भी मिलता है। 

ज्योतिष विधा में सूर्य को सभी ग्रहों का स्वामी माना गया है। इसीलिए माना जाता है कि यदि सभी ग्रहों को प्रसन्न करने के बजाय केवल सूर्यदेव की ही आराधना की जाए तो मनुष्य को कई लाभ मिल सकते हैं। 

यह पर्व सूर्य, उनकी पत्नी उषा तथा प्रत्यूषा, प्रकृति, जल, वायु और सूर्य की बहन छठी मैया को समर्पित है। उषा तथा प्रत्यूषा को सूर्य की शक्तियों का मुख्य स्रोत माना गया हैए इसीलिए छठ पर्व में सूर्य तथा छठी मैया के साथ इन दोनों शक्तियों की भी आराधना की जाती है। प्रातःकाल में सूर्य की पहली किरण (उषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अर्ध्य देकर दोनों को नमन किया जाता है। 

षष्ठी देवी को ही छठ मैया कहा गया है, जो निसंतानों को संतान देती हैं और संतानों की रक्षा कर उनको दीर्घायु बनाती हैं। पुराणों में पष्ठी देवी का एक नाम कात्यायनी भी है, जिनकी पूजा नवरात्र में छठे दिन होती है। माना जाता है कि छठ पर्व में सूर्य की उपासना करने से, छठी माता प्रसन्न होकर घर-परिवार में सुख-समृद्धि, रोगमुक्ति, सम्पन्नता और मनोवांछित फल प्रदान करती हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य देवता की बहन छठी मैया संतानों की रक्षा कर उन्हें लंबी आयु प्रदान करती हैं। सूर्योपासना का महापर्व छठ कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी (छठी) को मनाया जाता है, इसीलिए इसे छठ महापर्व भी कहा जाता है। इस चार दिवसीय उत्सव की शुरूआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी के दिन "नहाय खाय" से होती है, अगले दिन "खरना" होता है, तीसरे दिन छठ का प्रसाद तैयार किया जाता है और स्नान कर अस्त होते सूर्य को अर्ध्य दिया जाता हैए सप्तमी को चौथे और अंतिम दिन उगते सूर्य की पूजा-आराधना के साथ इस महापर्व का समापन होता है। छठ पर्व के प्रसाद में प्रायः चावल के लड्डू बनाए जाते हैं और बांस की टोकरी में प्रसाद तथा फल सजाकर इस टोकरी की पूजा की जाती है। व्रत रखने वाली महिलाएं सूर्य को अर्ध्य देने तथा पूजा के लिए तालाबए नदी अथवा घाट पर जाकर स्नान कर डूबते हुए सूर्य की पूजा करती हैं और अगले दिन सूर्योदय के समय सूर्य को अर्ध्य देकर पूजा करने के पश्चात् प्रसाद बांटकर छठ पूजा का समापन होता है। सही मायनों में यह महापर्व जीवनदायी सूर्यदेव के प्रति आभार प्रकट करने का महापर्व है।

छठ पूजा के अवसर पर नदियों, तालाबों इत्यादि के किनारे पूजा की जाती है, जिससे लोगों को इन जल स्रोतों के आसपास साफ-सफाई रखने की प्रेरणा मिलती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार छठ पूजा साफ-सुथरी नदी, तालाबों या अन्य जलस्रोतों के किनारे ही की जाती हैए इसीलिए पूजा से पहले इन जलस्रोतों के आसपास पूरी साफ-सफाई करने का विधान है। यह महापर्व नदियों को प्रदूषण से मुक्त करने का प्रेरणा देता है, इसीलिए इसे सर्वाधिक पर्यावरण अनुकूल हिन्दू त्यौहार माना जाता है। आस्था और निष्ठा का अनुपम लोकपर्व "छठ" उत्तर भारत, विशेषकर बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाने वाला सूर्य की उपासना का महापर्व है।

सुखी भारती

छठ पूजा पर सुखी भारती की कलम से
  • Title : छठ पूजा पर सुखी भारती की कलम से
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  • Date : नवंबर 02, 2024
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