राम राज्य को स्थापित करने के लिए श्री राम को जानना होगा - साध्वी शचि भारती
होशियारपुर/दलजीत अजनोहा
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा श्री राम लीला ग्राउंड, गवर्नमेंट सीनियर सेकंडरी स्कूल बॉयज, ऊना (हि.प्र.) में भव्य श्री राम कथा का आयोजन किया गया। आज की कथा में विशेष रूप से सचिन शर्मा ( फूला वाले बाबा मुबारकपुर ) और राणा बाबा (भाई घनैया ट्रस्ट)
पधारे व उन्होंने ने साध्वी शचि भारती जी को सन्मानित किया l कथा के पांचवें दिवस कथा व्यास साध्वी शचि भारती जी ने सुन्दर कांड का व्याख्यान किया l उन्होंने कहा कि हनुमानजी लंका में जाकर माँ सीता जी का पता लगाते हैं l "सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान।
सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान" l
श्री रघुनाथजी का गुणगान संपूर्ण सुंदर मंगलों का देने वाला है। जो इसे आदर सहित सुनेंगे, वे बिना किसी जहाज (अन्य साधन) के ही भवसागर को तर जाएँगे l
आगे उन्होंने बताया कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के मार्गदर्शन में अयोध्या का राज्य सभी प्रकार से उन्नत था। क्या यही राम राज्य की वास्तविक परिभाषा है तो इसका जवाब है नहीं। अगर यही रामराज्य की सही परिभाषा है तो लंका भी तो भौतिक सम्पन्नता, समृद्धि, ऐश्वर्य, सुव्यवस्थित सेना में अग्रणी थी। परन्तु फिर भी उसे राम राज्य के समतुल्य नहीं कहा जाता क्योंकि लंकावासी मानसिक स्तर पर पूर्णता अविकसित थे। उनके भीतर आसुरी प्रवृत्तियों का बोलवाला था। वहाँ की वायु तक में भी अनीति, अनाचार और पाप की दुर्गन्ध थी। जहाँ चारों और भ्रष्टाचार और चरित्रहीनता का ही सम्राज्य फैला हुआ था।
राम के राज्य की बात सुनते ही अक्सर मनमें विचार आते हैं। कि राम राज्य आज भी होना चाहिये। साध्वी जी ने कहा कि वर्तमान समय में भी यदि हम ऐसे ही अलौकिक राम राज्य की स्थापना करना चाहतें हैं, तो सर्व प्रथम प्रभु राम को जानना होगा। प्रभु राम का प्राक्ट्य अपने भीतर करवाना होगा परन्तु हम अपनी संकीर्ण बुद्धि एवं लौकिक इन्द्रियों से त्रेता के इस युग-प्रणेता को नहीं जान सकते। वे केवल अयोध्या के ही आदर्श संचालक नहीं थे, अपितु सम्पूर्ण सृष्टि के नियामक तत्त्व हैं। ऐसे ब्रह्मस्वरूप श्री राम जी को केवल ब्रह्मज्ञान के द्वारा ही जाना जा सकता है। श्री राम हमारे हृदय में निवास करते हैं और उनका दर्शन केवल दिव्य नेत्र द्वारा होता है। जिसके बारे में हमारे सभी धार्मिक शास्त्रों में बताया गया है। परंतु जब तक हमें एक पूर्ण सद्गुरु द्वारा ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति नहीं होती तब तक हम ईश्वर का साक्षात्कार नहीं कर सकते। सद्गुरु दीक्षा देते समय इस दिव्य नेत्र को खोल देते है। जिसके खुलते ही जिज्ञासु अपने भीतर ईश्वर के वास्तविक रूप का प्रत्यक्ष दर्शन करता है। जब भीतर हृदय के सिंहासन पर राम विराजमान होते है, तब राम राज्य की स्थापना होती है। कथा का समापन प्रभु की पावन आरती से हुआ। जिसमें विशेष तौर पर वीरेंद्र कंवर (पूर्व मंत्री हि. प्र.),सचिन शर्मा फूल वाले बाबा जी, स्वामी सज्जनानंद जी,अंशुल धीमान ( जनरल मैनेजर इंडस्ट्री),राणा बाबा जी, साध्वी रुक्मणि भारती जी,साध्वी राजवंत भारती जी,साध्वी उत्तमा भारती,साध्वी श्वेता भारती जी,साध्वी नंदनी भारती, जी,साध्वी तेजस्विनी भारती जी,साध्वी मीमांसा भारती जी,साध्वी वीणा भारती जी,साध्वी अंजली भारती जी,हरि ओम गुप्ता ( जनहित मोर्चा ऊना) सुरेंद्र ठाकुर ( स्टेट पैटर्न रेड क्रॉस सोसाइटी)कृष्णपाल ( जिला परिषद)ओंकार किसाना ( वाइस चेयरमैन जिला परिषद, अश्वनी जैतिक ( दयाल स्वीट्स),बाल कृष्ण शर्मा, मेहताब ठाकुर( प्रधान नागरौली )सत्यपाल शर्मा, नीटा पुरी,बलविंदर गोल्डी ,बजरंग दल के सभी सदस्य,विश्व हिंदू परिषद के सदस्य, व भारी संख्या में श्रद्धालू मौजूद रहे l
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